कहाँ हो ईश्वर तुम ?
क्यों मुझे कहीं भी नजर नहीं आते...??
पूछा है कई बार मैंने पंडितों से,
पर वो तुम्हारा सही-सही पता नहीं बताते,
क्या तुम किसी मंदिर में छुप कर बेठ गए हो,
या शेशनाग में दुबक कर लेट गए हो,
कभी सोंचता हूँ की तुम्हारा कोई अस्तित्व है भी,
या तुम अपनी कहानियों में ही सिमट कर रह गए हो,
अक्सर में तुम्हारे साथ खुदको एक दोराहे पर खड़ा पता हूँ,
जहाँ से तुम एक तरफ तो मैं दूसरी तरफ चला जाता हूँ,
मुझे अब कोई शिकायत नहीं है तुमसे,
मैं जान गया हूँ की तुम्हारे होने से हमारा अस्तित्व नहीं,
बल्कि आदमी है तो ज़िन्दा हो तुम,
इसलिए अब मैं तुमसे या तुम्हारे किसी धर्माधिकारी से डरता नहीं,
तुम हो या नहीं हो अब इस पचड़े में मैं नहीं पड़ना चाहता,
तुम कहीं हो, तो भी ठीक नहीं हो तो भी ठीक,
औरों की तरह मैं तुमसे कुछ मांगता-छांगता नहीं,
न धन-दौलत, न शक्ति, कुछ भी नहीं न ही कोई और भीख,
लेकिन मैं तुम्हारे आतंक से मुक्त होना चाहता हूँ, ईश्वर!
अगर सचमुच तुम कहीं हो और कुछ दे सकते हो,
तो मुझे अपने आतंक से मुक्त करो, ईश्वर!.............मोहनिश...!