Wednesday, October 31, 2012

एक मुस्कराहट

हँसी थम जाती है 
पर कभी ख़त्म नहीं होती
ये झरती है 
और कलकल करती हुई 
रिसती है दिमाग़ में
हँसी की शुरुवात 
एक मुस्कराहट से होती है
वही मुस्कराहट 
आगे जाकर मन को 
आनंदित करती है
और जब मन इस उन्माद 
इस आनंद को झेल नहीं पता
तब कही जाकर 
हम बड़ा सा मुँह खोलकर
दाँत दिखाते हुए
ठाहके लागाते हुए 
हँसते है ..........!! 
  

Thursday, September 6, 2012

मैं आज भी जीवित हूँ


मैं आज भी जीवित हूँ,
पहले से अधिक पवित्रता,
पूर्णता के साथ.......!!

यही पवित्रता और पूर्णता

मुझे अन्य जीव-जंतुओं से
अलग करती है ......!!

मैं अपने में समेटे हूँ,
कई और भी रूप,
जो मुझे सार्थक बनाते है.....!!

मेरे विवेक को प्राप्‍त है,
दृष्टि, जो मुझे जीवन
से जोड़कर रखती है......!!

और यही जीवन है,
जो मुझे राख होने से
अब तक रोके हुए है..............मोहनिश........!!

जो मानो उसको

जो मानो उसको.... तो वो हर कहीं है,

कहते है लोग

ये उसी का आसमान है
ये उसी की जमीन है.....

अभी-अभी यहाँ हैं,

और अभी ओर कहीं हैं....

वो सिर्फ हमारा ही नहीं,


कई ओरों का भी है....

देखो उसके करिश्में

जो दिखते हर कहीं है.........

ये शब्द खिलौना बन कर हमेंशा

ये शब्द खिलौना बन कर हमेंशा से ही ...मेरे साथ खेलते रहें है.....
मुझे चुप रहना अच्छा लगता है ...पर ये शब्द हमेशा ही बोलते रहे है.....

मैंने हर एक दर्द को दफना दिया है दिल ही में.....
पर ये शब्द धोखे से मेरा हर राज़ खोलते रहें है......

जब-जब ये शब्द फूटते है मेरे मुंह से, कई लोग हंस पड़ते है........
ये सच है की हकीकत पर किसी को जल्दी से भरोसा नहीं होता......

यूँ खुद से होना अनजान अच्छा नहीं

यूँ खुद से होना अनजान अच्छा नहीं,
यूँ किसी से भी बढ़ाना पहचान अच्छा नहीं....

ये दुनिया है दो सोंच वालो की,
यहाँ एक पहचान बनाना अच्छा नहीं......

हर बात में सिर्फ कमियां ही देखी जाती है.....
यूँ तो किसी को बुरा बताना अच्छा नहीं....

छोड़कर कल्पना

छोड़कर कल्पना,
वास्तविकता पर उतर आओ,

जो अच्छा हुआ है अबतक,
सिर्फ उसे ही याद रखो......

बचा जो कुछ है बुरा...
छोडो भी उसे अब सब भूल जाओ..........

मुझे भरोसा है

मुझे भरोसा है कि आज भी दुनिया
ख़ूबसूरत है.....

और कविता रोटी की तरह सबकी

ज़रूरत है......!!

एक कविता पढकर, किसी का खून
उबाल खाता है....

तो कोई मोम बनकर पिघल

भी जाता है......!!

कभी ये कविता क्रांति तक

ला देती है....

कभी ये हर शोर मिटा कर,

शांति फैला देती है......!!

माना इसमें नदिओं सा

वेग नहीं है....

पर ये कागज की छाती पर लिखा,

केवल एक लेख नहीं है.......!!

इसकी सीमा अंतरिक्ष से भी

अनंत है.....

ये प्रेम, शांति, अहिंसा,

और सत्यता का ग्रन्थ है........मोहनिश.....!


Friday, August 3, 2012

हर किसी के सामने सिर झुका दूँ....????

हर किसी के सामने सिर झुका दूँ,
इतना भी मजबूर .......मैं इंसान नहीं.........

तू होगा कई गुलामों का आका,
पर है तो एक इंसान ही.....कोई भगवान नहीं......मोहनिश....!!

Tuesday, July 3, 2012

हृदय एक दर्पण बन जाए

काश... की मेरा हृदय एक दर्पण बन जाए....
जो टूटने पर भी सौ प्रतिबिम्ब दिखाए......

काश....की मेरा मन जुगनू हो जाए....
अंधेर नगरी में जो राह दिखाए.....

काश....की मेरा करुण अतीत बदल जाए....
और वर्तमान सुख की लहरों से खेलता नजर आए........मोहनिश......!!

Sunday, June 24, 2012

सपनों के महल थे जो कभी

सपनों के महल थे जो कभी
अब वो खण्डहर हो चुके हैं.....

राहगीर चलते-चलते बहुत थक गए थे......
यहीं कहीं राह में सो गए हैं.....

मंजिल तो अब दूर जैसे...... क्षितिज के परे है,
फिर भी उठ चले है वो सब....
पैरों के छाले भी फिर से हरे हो गए हैं.......

अपनी परछाई भी जैसे अब,
कहीं बहुत दूर, धुंदली सी दिखाई देती है......

कामयाबी अंधी सखी सी बनी बैठी है साथ में उसके,
जिसे नाकामी अब हरपल तकती रहती है...................मोहनिश...........!!!

Saturday, June 23, 2012

विरान शहर

विरान शहर....
विरान है घर....

है विरान अब........ हर मंजर.......

हर तरफ..... अँधेरा...

हर ओर है फैला
सिर्फ...ज़हर.....ही ज़हर

टूट रहा है शामों-सहर
बस कहर..और...कहर.....

अब कैसे हो इस  दुनिया में,
बिना डरे....गुज़र.....बसर.....


दिखता नहीं कहीं भी..
दूर-दूर तक कोई भी दर....

जहाँ रखकर सर.....
बयां करें अपना ये डर.......


विरान शहर....
विरान है घर....

है विरान अब........ हर मंजर............मोहनिश......!!

Tuesday, June 19, 2012

कल जब बारिश हुई थी

कल जब बारिश हुई थी......
बहुत सुहाना हो गया था मौसम......

काले बादलों ने तपते सूरज को ढक लिया था,
और एक मद्धम सी रौशनी के साथ
हर तरफ अपनी छाया फैला दी थी....

जैसे ही नन्ही-नन्ही बूंदों ने आँगन को भिगोना शुरू किया....
तभी एक सौंधी सी खुशबू सभी तरफ फ़ैल गई...
और प्रकृति के सोंदर्य का अहसास करवा दिया.....

कुछ ही देर में बारिश तेज हुई और बड़ी-बड़ी बूंदों ने,
जमीन पर इकठ्ठा होकर बहना शुरू कर दिया.....
जिसे जिस तरफ ढलान मिली वो बह चलीं.......

रिमझिम-रिमझिम बारिश धीरे-धीरे कम होने लगी थी....
और बादल भी सूरज को आजाद कर रहे थे अपनी गति से...
तभी एक तरफ नजर आया एक....... इन्द्रधनुष..........

जो सभी सात रंग लिए था अपने में....
और हमें सीख दे रहा था हल हाल में साथ रहने की..........मोहनिश......!!

Sunday, June 17, 2012

जब भी मौसम बहार का आता है

जब ये मौसम बहार लाता है....
हर तरफ खुशी और प्यार लाता है....

बहुत दिनों तक रहता है इंतजार इसका,
पर जब इसे आना होता है ये तभी आता है....

कभी रिमझिम-रिमझिम बारिश....
तो ये कभी इन्द्रधनुष दिखता है....

ये मोहक, सुन्दर रूप प्रकृति का...
सभी के मन को लुभाता है........

कहीं नदियाँ तो कहीं झरने,
तो ये कहीं बादलों में छुपा सूरज दिखता है....

जब भी मौसम बहार का आता है,
हर तरफ खुशी और प्यार लाता है........मोहनिश....!!

Wednesday, June 13, 2012

पर्वत

दूर तक देखने पर
कहीं एक तरफ नजर आते हैं पर्वत......!

विशाल ह्रदय से जैसे बुला रहें हों,
लगता है अभी हाँथ बढ़ा कर छु लूँ इन्हें.......!

मेरे अपने से लगते है कभी-कभी ये पर्वत,
जो एक अजीब सी ख़ामोशी लिए बैठे है.....
जैसे इंतजार कर रहें हो मेरे पहले बोलने का......

वो चाहते है की मैं उनपर विश्वास करूँ,
और चढ जाऊ उनपर......तब वे मुझे धकेल दें फिर से नीचे.....
और अहसास करवा दें ...

यही की कोई अपना नहीं है इस दुनिया में......
सभी पराये........दूर हैं....
और ढोंग रचाये बैठे है.....अपने होने का.............मोहनिश......!!

निराशा का एक शान्त समुन्दर

निराशा का एक शान्त समुन्दर,
हमारी आँखों में सदा ही दबा रहता है....!

जब कभी हताशा की लहरें आती है,
तब ये शांत सा दिखने वाला समुन्दर,
बन जाता है सुनामी......!

तब हर तरह की उम्मीद और साहस,
सभी एक-एक करके दम तोड़ने लगतें है......!

और वहाँ कोई फरिश्ता भी मदद को नहीं आता,
सभी खुद को बचाने में जुटे नजर आते है.......!

Saturday, May 26, 2012

रेशम में लिपटी जिंदगी

जिंदगी हर बार कैद ही रही,
फिर भी कभी रुकी नहीं, कहीं थमी नहीं......

रेशम में लिपटी हुई,
डाल के सहारे लटकती रही.....

जिससे दामन दुनिया अपना,
हर बार झटकती रही........

फिर आई बरी उसकी,
अब आया समय बदल जाने का,

फूलों सा खिल कर,
वन-वन मंडराने का.........!!!!

पेंडो का बंधन

रात जैसे-जैसे गहरी हुई, और अँधेरा हुआ सभी तरफ,
तभी पेंड तेज हवाओं का सहारा लेते हुए
कुछ इस तरह से सरसराने लगे मानो बातें कर रहें हो...आपस में.....

वे पेंड कई सालों से खड़े है अपनी जगह पर,
लगता है वे अब ऊब चुके है इस तरह खड़े-खड़े.......

तेज हवा का बहाना बना कर वो हर बार कोशिश करते है,
अपने स्थान को बदलने की....पर ये जड़ें........

ये जड़ें उन्हें उखड़ने नहीं देतीं,
ये पेंड को अपना गुलाम बनाये हुए हैं.....कई सालों से....

हल्की सी रौशनी में दिखाई पड़ता है....
मानो सभी पेंड आपस में भाग जाने की,
कोई योजना बना रहें हो....और फिर सहमति में अपना भी सर हिला रहे हों.....

पर मुश्किल से ही कोई पेंड इस बंधन से आजाद हो पाता है,
और अगर हो भी जाता है तो मारा जाता है....
समाप्त कर दिया जाता है......प्रकृति के द्वारा.....

आजादी किसे प्यारी नहीं है, पर मौत तो कोई आजादी नहीं.......
ये सब मायाजाल है इन तेज चलती हवाओं का....
जो पेंडो के मन में बगावत का बीज बो देती है......

मैं ऐसी हवाओं का विरोध करता हूँ.............................मोहनिश.........!!!

Saturday, May 12, 2012

जन्नत आती है नजर

उस पार कभी कभी,
मुझे जन्नत आती है नजर.....

चंचल हवाओं से जहाँ है बने घर,
और बादलों में सिमटा पूरा शहर.....

सुनहरी रौशनी के सहारे देखता है कोई,
जैसे, कभी मुझे तो कभी मेरा घर......

हर तरफ खुशबुओं का मोसम है,
उसे महसूस करूँ तो कहाँ, देखूं तो किधर....

मन तो करता है छु लूँ उसको हाँथ बढ़ा कर,
पर टूट न जाए ये सपना, लगता है इसका डर......मोहनिश.....!!!

Friday, January 6, 2012

I LOVE MY FAMILY


मां का प्यार होता हे असली प्यार जिसमे एक सच्चाई नजर आती हे,
जब दर्द होता हे, ओलाद को उस मां का भी दिल भर आता हे,,,

पिता का प्यार होता हे सबसे अलग हमेशा दुनिया के प्यार से,
बहार से लगता हे दिल पत्थर का हे,पर अन्दर से होता हे मोम जेसा,

एक भाई के प्यार को कोन भूल सकता हे, जो साये की तरह साथ होता हे,
जब भी आती हे कोई मुसीबत बड़ा भाई ही रक्षा को खड़ा नजर आता हे,

एक बहन का प्यार होता हे बड़ा ही मासूम, दुनिया के हर प्यार से अदभुत,
जो भाई की कलाई पे राखी बांध कर, हमेशा भाई के खुश रहने की दुआ करती हे,

प्यार के कई रूप नजर आते हें मुझे सभी रिश्तों में, मैं गिनता हूँ इन सबको मेरे फरिश्तों में,
फिर भी न जाने क्यों लोग समझते हें, इन रिश्तों को छोटा """कुछ झूटे रिश्तों से""",,,,

ज़माना

ज़माना आया है हमारा तो अक्सर सोंचता हूँ मैं,
अब पिछली जिंदगी के फटे पन्ने खरोंचता हूँ मैं,

जिंदगी बेलगाम सही पर बहुत ही आम हुआ करती थी,
हर एक पल में थी जान, हर सांस एक पैगाम हुआ करती थी,
...
क्यों बदल गया ये मौसम मेरी उम्र के साथ,
क्यों नहीं लौटता है वक्त एक बात गुजर जाने के बाद,

मिट्टी के घरों को याद करके आज भी खुश हो लेता हूँ मैं,
कभी-कभी माँ के अंचल में सर छुपा कर सो लेता हूँ मैं,

क्या कभी बचपन वापस आएगा,
क्या फिर ये "मनु" छोटू की जिंदगी जी पायगा.......??

दोस्त

एक दोस्त ही बहुत है "मनु" दोस्ती निभाने के लिए,
दो दोस्त बहुत होते है वक्त पर काम आने के लिए,
तीन दोस्त बहुत है दुनिया को भूल जाने के लिए,
और चार दोस्त काफी है इंसान की अर्थी उठाने के लिए.........!!

मैं हूँ अंतहीन आसमान

मैं हूँ अंतहीन आसमान इस धरती का,
संभावनाओं से ऊँची उड़ान  है मेरी,
कभी बरसात तो कभी धुप ही शान है मेरी,

युगों-युगों से हूँ मैं धरती पर छाया,
सदियों से धरती और मेरा अटूट नाता चला आया,
फिर भी अब तक मैं उस से मिल ना पाया,

हम मिले हुए दिखाई देते है, क्षितिज में,
पर जब भी मैंने देखा क्षितिज को तुम्हारा संपर्क ओझल पाया,
इस परमात्मा के रचित दूरी ने मेरा मन बड़ा दुखाया,

मैं तुमसे मिलने को सतरंगी इन्द्रधनुषी रंगों की सीढियां बनता हूँ,
फिर तुम्हे छु कर, कुछ समय के लिए तुम मैं ही खो जाता हूँ,
प्रेम मिलन कर, जाते-जाते अपने अश्रु बहता हूँ, और तुम्हे तृप्त कर जाता हूँ,

अब न मुझे बिछड़ने का दुःख है न अलग होने का गम,
अब तुम-तुम नहीं हो मैं-मैं नहीं, अब है अगर कोई तो हैं  "हम",

तुम रहोगी मेरी प्रिया धरती,
और मैं रहूँगा तुम्हारा प्रियतम आसमान,
मैं हूँ धरती का आसमान और तुम..??
तुम हो इस आसमान की धरती.................मोहनिश...!

Tuesday, January 3, 2012

जिंदगी जीना सीख लिया

अब हमने भी लोगों को परखना सीख लिया,
वादा करके बड़ी होशयारी से मुकरना सीख लिया,

चहरे बदलने लगा हूँ मैं भी, दिन में कई बार,
मैंने भी अब अकड़ कर अब चलना सीख लिया,

मुझसे पूंछा करते है लोग अक्सर,
कब से ये तुमने "मनु" रंग बदलना सीख लिया.......मोहनिश...!

ज़रा "मौत" के बारे में सोच


कभी एक पल के लिए ठहर ज़रा "मौत" के बारे में सोच,
और खींच मत अपना ही "अंत" अपने दोनों हाथों से अपनी ही ओर,
बन कठोर इतना की हो नहीं लालच की तुझ में ज़रा भी लोच....!!

कभी एक पल के लिए ठहर ज़रा "मौत" के बारे में सोच,
अब भूल भी जा अपना अभिमान, क्रोध, अहम,
ख़ुद को विनम्र बना इतना की किसी को लगे नहीं तुझ से कोई खरोंच....!!

कभी एक पल के लिए ठहर ज़रा "मौत" के बारे में सोच,
मन से दे सबको स्नहे अपना और दूसरों के लिए उँड़ेल सदा हास-विहास,
फिर न कभी तुझ को लगेगा जीवन यह अरोच....!!

रिक्त नहीं रहेगा फिर कभी तेरा मन
प्रसन्न रहेगा तू हमेशा, हर क्षण, जीवन भर.........मोहनिश...!

एक पराई जिंदगी जी चला हूँ

एक सहारे की तलाश में बहुत दूर आ गया हूँ,
इतना गुम मैं रहा हूँ ,खुद की खुदी में मैं,

की आज अपने हिस्से की जमीं तक भुला गया हूँ,
कोई और ही ले चला हे मेरे हिस्से का कफ़न,

और में किसी और की ही जिन्दगी जी चला हूँ,
शराब से जहर अच्छा लगा तो एक घुट जहर ही पी चला हूँ,

मैं कभी जिन्दा न था कभी अपनी जिन्दगी की रह पे इस तरह,
पर आज किसी और की तलाश में जिन्दा हो चला हूँ,

बेजान समझ कर लोग पत्थर मारे जाते हें मुझको,
चलो आज लोगो की खुशी के लिए बेजान हो चला हूँ............मोहनिश......!

कहाँ हो ईश्वर तुम ?

कहाँ हो ईश्वर तुम ?
क्यों मुझे कहीं भी नजर नहीं आते...??

पूछा है कई बार मैंने पंडितों से,
पर वो तुम्हारा सही-सही पता नहीं बताते,
क्या तुम किसी मंदिर में छुप कर बेठ गए हो,
या शेशनाग में दुबक कर लेट गए हो,

कभी सोंचता हूँ की तुम्हारा कोई अस्तित्व है भी,
या तुम अपनी कहानियों में ही सिमट कर रह गए हो,
अक्सर में तुम्हारे साथ खुदको एक दोराहे पर खड़ा पता हूँ,
जहाँ से तुम एक तरफ तो मैं दूसरी तरफ चला जाता हूँ,

मुझे अब कोई शिकायत नहीं है तुमसे,
मैं जान गया हूँ की तुम्हारे होने से हमारा अस्तित्व नहीं,
बल्कि आदमी है तो ज़िन्दा हो तुम,
इसलिए अब मैं तुमसे या तुम्हारे किसी धर्माधिकारी से डरता नहीं,

तुम हो या नहीं हो अब इस पचड़े में मैं नहीं पड़ना चाहता,
तुम कहीं हो, तो भी ठीक नहीं हो तो भी ठीक,
औरों की तरह मैं तुमसे कुछ मांगता-छांगता नहीं,
न धन-दौलत, न शक्ति, कुछ भी नहीं न ही कोई और भीख,

लेकिन मैं तुम्हारे आतंक से मुक्त होना चाहता हूँ, ईश्वर!
अगर सचमुच तुम कहीं हो और कुछ दे सकते हो,
तो मुझे अपने आतंक से मुक्त करो, ईश्वर!.............मोहनिश...!