Friday, January 6, 2012

I LOVE MY FAMILY


मां का प्यार होता हे असली प्यार जिसमे एक सच्चाई नजर आती हे,
जब दर्द होता हे, ओलाद को उस मां का भी दिल भर आता हे,,,

पिता का प्यार होता हे सबसे अलग हमेशा दुनिया के प्यार से,
बहार से लगता हे दिल पत्थर का हे,पर अन्दर से होता हे मोम जेसा,

एक भाई के प्यार को कोन भूल सकता हे, जो साये की तरह साथ होता हे,
जब भी आती हे कोई मुसीबत बड़ा भाई ही रक्षा को खड़ा नजर आता हे,

एक बहन का प्यार होता हे बड़ा ही मासूम, दुनिया के हर प्यार से अदभुत,
जो भाई की कलाई पे राखी बांध कर, हमेशा भाई के खुश रहने की दुआ करती हे,

प्यार के कई रूप नजर आते हें मुझे सभी रिश्तों में, मैं गिनता हूँ इन सबको मेरे फरिश्तों में,
फिर भी न जाने क्यों लोग समझते हें, इन रिश्तों को छोटा """कुछ झूटे रिश्तों से""",,,,

ज़माना

ज़माना आया है हमारा तो अक्सर सोंचता हूँ मैं,
अब पिछली जिंदगी के फटे पन्ने खरोंचता हूँ मैं,

जिंदगी बेलगाम सही पर बहुत ही आम हुआ करती थी,
हर एक पल में थी जान, हर सांस एक पैगाम हुआ करती थी,
...
क्यों बदल गया ये मौसम मेरी उम्र के साथ,
क्यों नहीं लौटता है वक्त एक बात गुजर जाने के बाद,

मिट्टी के घरों को याद करके आज भी खुश हो लेता हूँ मैं,
कभी-कभी माँ के अंचल में सर छुपा कर सो लेता हूँ मैं,

क्या कभी बचपन वापस आएगा,
क्या फिर ये "मनु" छोटू की जिंदगी जी पायगा.......??

दोस्त

एक दोस्त ही बहुत है "मनु" दोस्ती निभाने के लिए,
दो दोस्त बहुत होते है वक्त पर काम आने के लिए,
तीन दोस्त बहुत है दुनिया को भूल जाने के लिए,
और चार दोस्त काफी है इंसान की अर्थी उठाने के लिए.........!!

मैं हूँ अंतहीन आसमान

मैं हूँ अंतहीन आसमान इस धरती का,
संभावनाओं से ऊँची उड़ान  है मेरी,
कभी बरसात तो कभी धुप ही शान है मेरी,

युगों-युगों से हूँ मैं धरती पर छाया,
सदियों से धरती और मेरा अटूट नाता चला आया,
फिर भी अब तक मैं उस से मिल ना पाया,

हम मिले हुए दिखाई देते है, क्षितिज में,
पर जब भी मैंने देखा क्षितिज को तुम्हारा संपर्क ओझल पाया,
इस परमात्मा के रचित दूरी ने मेरा मन बड़ा दुखाया,

मैं तुमसे मिलने को सतरंगी इन्द्रधनुषी रंगों की सीढियां बनता हूँ,
फिर तुम्हे छु कर, कुछ समय के लिए तुम मैं ही खो जाता हूँ,
प्रेम मिलन कर, जाते-जाते अपने अश्रु बहता हूँ, और तुम्हे तृप्त कर जाता हूँ,

अब न मुझे बिछड़ने का दुःख है न अलग होने का गम,
अब तुम-तुम नहीं हो मैं-मैं नहीं, अब है अगर कोई तो हैं  "हम",

तुम रहोगी मेरी प्रिया धरती,
और मैं रहूँगा तुम्हारा प्रियतम आसमान,
मैं हूँ धरती का आसमान और तुम..??
तुम हो इस आसमान की धरती.................मोहनिश...!

Tuesday, January 3, 2012

जिंदगी जीना सीख लिया

अब हमने भी लोगों को परखना सीख लिया,
वादा करके बड़ी होशयारी से मुकरना सीख लिया,

चहरे बदलने लगा हूँ मैं भी, दिन में कई बार,
मैंने भी अब अकड़ कर अब चलना सीख लिया,

मुझसे पूंछा करते है लोग अक्सर,
कब से ये तुमने "मनु" रंग बदलना सीख लिया.......मोहनिश...!

ज़रा "मौत" के बारे में सोच


कभी एक पल के लिए ठहर ज़रा "मौत" के बारे में सोच,
और खींच मत अपना ही "अंत" अपने दोनों हाथों से अपनी ही ओर,
बन कठोर इतना की हो नहीं लालच की तुझ में ज़रा भी लोच....!!

कभी एक पल के लिए ठहर ज़रा "मौत" के बारे में सोच,
अब भूल भी जा अपना अभिमान, क्रोध, अहम,
ख़ुद को विनम्र बना इतना की किसी को लगे नहीं तुझ से कोई खरोंच....!!

कभी एक पल के लिए ठहर ज़रा "मौत" के बारे में सोच,
मन से दे सबको स्नहे अपना और दूसरों के लिए उँड़ेल सदा हास-विहास,
फिर न कभी तुझ को लगेगा जीवन यह अरोच....!!

रिक्त नहीं रहेगा फिर कभी तेरा मन
प्रसन्न रहेगा तू हमेशा, हर क्षण, जीवन भर.........मोहनिश...!

एक पराई जिंदगी जी चला हूँ

एक सहारे की तलाश में बहुत दूर आ गया हूँ,
इतना गुम मैं रहा हूँ ,खुद की खुदी में मैं,

की आज अपने हिस्से की जमीं तक भुला गया हूँ,
कोई और ही ले चला हे मेरे हिस्से का कफ़न,

और में किसी और की ही जिन्दगी जी चला हूँ,
शराब से जहर अच्छा लगा तो एक घुट जहर ही पी चला हूँ,

मैं कभी जिन्दा न था कभी अपनी जिन्दगी की रह पे इस तरह,
पर आज किसी और की तलाश में जिन्दा हो चला हूँ,

बेजान समझ कर लोग पत्थर मारे जाते हें मुझको,
चलो आज लोगो की खुशी के लिए बेजान हो चला हूँ............मोहनिश......!

कहाँ हो ईश्वर तुम ?

कहाँ हो ईश्वर तुम ?
क्यों मुझे कहीं भी नजर नहीं आते...??

पूछा है कई बार मैंने पंडितों से,
पर वो तुम्हारा सही-सही पता नहीं बताते,
क्या तुम किसी मंदिर में छुप कर बेठ गए हो,
या शेशनाग में दुबक कर लेट गए हो,

कभी सोंचता हूँ की तुम्हारा कोई अस्तित्व है भी,
या तुम अपनी कहानियों में ही सिमट कर रह गए हो,
अक्सर में तुम्हारे साथ खुदको एक दोराहे पर खड़ा पता हूँ,
जहाँ से तुम एक तरफ तो मैं दूसरी तरफ चला जाता हूँ,

मुझे अब कोई शिकायत नहीं है तुमसे,
मैं जान गया हूँ की तुम्हारे होने से हमारा अस्तित्व नहीं,
बल्कि आदमी है तो ज़िन्दा हो तुम,
इसलिए अब मैं तुमसे या तुम्हारे किसी धर्माधिकारी से डरता नहीं,

तुम हो या नहीं हो अब इस पचड़े में मैं नहीं पड़ना चाहता,
तुम कहीं हो, तो भी ठीक नहीं हो तो भी ठीक,
औरों की तरह मैं तुमसे कुछ मांगता-छांगता नहीं,
न धन-दौलत, न शक्ति, कुछ भी नहीं न ही कोई और भीख,

लेकिन मैं तुम्हारे आतंक से मुक्त होना चाहता हूँ, ईश्वर!
अगर सचमुच तुम कहीं हो और कुछ दे सकते हो,
तो मुझे अपने आतंक से मुक्त करो, ईश्वर!.............मोहनिश...!