उस पार कभी कभी,
मुझे जन्नत आती है नजर.....
चंचल हवाओं से जहाँ है बने घर,
और बादलों में सिमटा पूरा शहर.....
सुनहरी रौशनी के सहारे देखता है कोई,
जैसे, कभी मुझे तो कभी मेरा घर......
हर तरफ खुशबुओं का मोसम है,
उसे महसूस करूँ तो कहाँ, देखूं तो किधर....
मन तो करता है छु लूँ उसको हाँथ बढ़ा कर,
पर टूट न जाए ये सपना, लगता है इसका डर......मोहनिश.....!!!
मुझे जन्नत आती है नजर.....
चंचल हवाओं से जहाँ है बने घर,
और बादलों में सिमटा पूरा शहर.....
सुनहरी रौशनी के सहारे देखता है कोई,
जैसे, कभी मुझे तो कभी मेरा घर......
हर तरफ खुशबुओं का मोसम है,
उसे महसूस करूँ तो कहाँ, देखूं तो किधर....
मन तो करता है छु लूँ उसको हाँथ बढ़ा कर,
पर टूट न जाए ये सपना, लगता है इसका डर......मोहनिश.....!!!
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteसादर