Saturday, May 12, 2012

जन्नत आती है नजर

उस पार कभी कभी,
मुझे जन्नत आती है नजर.....

चंचल हवाओं से जहाँ है बने घर,
और बादलों में सिमटा पूरा शहर.....

सुनहरी रौशनी के सहारे देखता है कोई,
जैसे, कभी मुझे तो कभी मेरा घर......

हर तरफ खुशबुओं का मोसम है,
उसे महसूस करूँ तो कहाँ, देखूं तो किधर....

मन तो करता है छु लूँ उसको हाँथ बढ़ा कर,
पर टूट न जाए ये सपना, लगता है इसका डर......मोहनिश.....!!!

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