Friday, January 6, 2012

मैं हूँ अंतहीन आसमान

मैं हूँ अंतहीन आसमान इस धरती का,
संभावनाओं से ऊँची उड़ान  है मेरी,
कभी बरसात तो कभी धुप ही शान है मेरी,

युगों-युगों से हूँ मैं धरती पर छाया,
सदियों से धरती और मेरा अटूट नाता चला आया,
फिर भी अब तक मैं उस से मिल ना पाया,

हम मिले हुए दिखाई देते है, क्षितिज में,
पर जब भी मैंने देखा क्षितिज को तुम्हारा संपर्क ओझल पाया,
इस परमात्मा के रचित दूरी ने मेरा मन बड़ा दुखाया,

मैं तुमसे मिलने को सतरंगी इन्द्रधनुषी रंगों की सीढियां बनता हूँ,
फिर तुम्हे छु कर, कुछ समय के लिए तुम मैं ही खो जाता हूँ,
प्रेम मिलन कर, जाते-जाते अपने अश्रु बहता हूँ, और तुम्हे तृप्त कर जाता हूँ,

अब न मुझे बिछड़ने का दुःख है न अलग होने का गम,
अब तुम-तुम नहीं हो मैं-मैं नहीं, अब है अगर कोई तो हैं  "हम",

तुम रहोगी मेरी प्रिया धरती,
और मैं रहूँगा तुम्हारा प्रियतम आसमान,
मैं हूँ धरती का आसमान और तुम..??
तुम हो इस आसमान की धरती.................मोहनिश...!

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