Friday, January 6, 2012

ज़माना

ज़माना आया है हमारा तो अक्सर सोंचता हूँ मैं,
अब पिछली जिंदगी के फटे पन्ने खरोंचता हूँ मैं,

जिंदगी बेलगाम सही पर बहुत ही आम हुआ करती थी,
हर एक पल में थी जान, हर सांस एक पैगाम हुआ करती थी,
...
क्यों बदल गया ये मौसम मेरी उम्र के साथ,
क्यों नहीं लौटता है वक्त एक बात गुजर जाने के बाद,

मिट्टी के घरों को याद करके आज भी खुश हो लेता हूँ मैं,
कभी-कभी माँ के अंचल में सर छुपा कर सो लेता हूँ मैं,

क्या कभी बचपन वापस आएगा,
क्या फिर ये "मनु" छोटू की जिंदगी जी पायगा.......??

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