Tuesday, January 3, 2012

एक पराई जिंदगी जी चला हूँ

एक सहारे की तलाश में बहुत दूर आ गया हूँ,
इतना गुम मैं रहा हूँ ,खुद की खुदी में मैं,

की आज अपने हिस्से की जमीं तक भुला गया हूँ,
कोई और ही ले चला हे मेरे हिस्से का कफ़न,

और में किसी और की ही जिन्दगी जी चला हूँ,
शराब से जहर अच्छा लगा तो एक घुट जहर ही पी चला हूँ,

मैं कभी जिन्दा न था कभी अपनी जिन्दगी की रह पे इस तरह,
पर आज किसी और की तलाश में जिन्दा हो चला हूँ,

बेजान समझ कर लोग पत्थर मारे जाते हें मुझको,
चलो आज लोगो की खुशी के लिए बेजान हो चला हूँ............मोहनिश......!

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