पेंडो का बंधन
रात जैसे-जैसे गहरी हुई, और अँधेरा हुआ सभी तरफ,
तभी पेंड तेज हवाओं का सहारा लेते हुए
कुछ इस तरह से सरसराने लगे मानो बातें कर रहें हो...आपस में.....
वे पेंड कई सालों से खड़े है अपनी जगह पर,
लगता है वे अब ऊब चुके है इस तरह खड़े-खड़े.......
तेज हवा का बहाना बना कर वो हर बार कोशिश करते है,
अपने स्थान को बदलने की....पर ये जड़ें........
ये जड़ें उन्हें उखड़ने नहीं देतीं,
ये पेंड को अपना गुलाम बनाये हुए हैं.....कई सालों से....
हल्की सी रौशनी में दिखाई पड़ता है....
मानो सभी पेंड आपस में भाग जाने की,
कोई योजना बना रहें हो....और फिर सहमति में अपना भी सर हिला रहे हों.....
पर मुश्किल से ही कोई पेंड इस बंधन से आजाद हो पाता है,
और अगर हो भी जाता है तो मारा जाता है....
समाप्त कर दिया जाता है......प्रकृति के द्वारा.....
आजादी किसे प्यारी नहीं है, पर मौत तो कोई आजादी नहीं.......
ये सब मायाजाल है इन तेज चलती हवाओं का....
जो पेंडो के मन में बगावत का बीज बो देती है......
मैं ऐसी हवाओं का विरोध करता हूँ.............................मोहनिश.........!!!
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