Sunday, June 24, 2012

सपनों के महल थे जो कभी

सपनों के महल थे जो कभी
अब वो खण्डहर हो चुके हैं.....

राहगीर चलते-चलते बहुत थक गए थे......
यहीं कहीं राह में सो गए हैं.....

मंजिल तो अब दूर जैसे...... क्षितिज के परे है,
फिर भी उठ चले है वो सब....
पैरों के छाले भी फिर से हरे हो गए हैं.......

अपनी परछाई भी जैसे अब,
कहीं बहुत दूर, धुंदली सी दिखाई देती है......

कामयाबी अंधी सखी सी बनी बैठी है साथ में उसके,
जिसे नाकामी अब हरपल तकती रहती है...................मोहनिश...........!!!

Saturday, June 23, 2012

विरान शहर

विरान शहर....
विरान है घर....

है विरान अब........ हर मंजर.......

हर तरफ..... अँधेरा...

हर ओर है फैला
सिर्फ...ज़हर.....ही ज़हर

टूट रहा है शामों-सहर
बस कहर..और...कहर.....

अब कैसे हो इस  दुनिया में,
बिना डरे....गुज़र.....बसर.....


दिखता नहीं कहीं भी..
दूर-दूर तक कोई भी दर....

जहाँ रखकर सर.....
बयां करें अपना ये डर.......


विरान शहर....
विरान है घर....

है विरान अब........ हर मंजर............मोहनिश......!!

Tuesday, June 19, 2012

कल जब बारिश हुई थी

कल जब बारिश हुई थी......
बहुत सुहाना हो गया था मौसम......

काले बादलों ने तपते सूरज को ढक लिया था,
और एक मद्धम सी रौशनी के साथ
हर तरफ अपनी छाया फैला दी थी....

जैसे ही नन्ही-नन्ही बूंदों ने आँगन को भिगोना शुरू किया....
तभी एक सौंधी सी खुशबू सभी तरफ फ़ैल गई...
और प्रकृति के सोंदर्य का अहसास करवा दिया.....

कुछ ही देर में बारिश तेज हुई और बड़ी-बड़ी बूंदों ने,
जमीन पर इकठ्ठा होकर बहना शुरू कर दिया.....
जिसे जिस तरफ ढलान मिली वो बह चलीं.......

रिमझिम-रिमझिम बारिश धीरे-धीरे कम होने लगी थी....
और बादल भी सूरज को आजाद कर रहे थे अपनी गति से...
तभी एक तरफ नजर आया एक....... इन्द्रधनुष..........

जो सभी सात रंग लिए था अपने में....
और हमें सीख दे रहा था हल हाल में साथ रहने की..........मोहनिश......!!

Sunday, June 17, 2012

जब भी मौसम बहार का आता है

जब ये मौसम बहार लाता है....
हर तरफ खुशी और प्यार लाता है....

बहुत दिनों तक रहता है इंतजार इसका,
पर जब इसे आना होता है ये तभी आता है....

कभी रिमझिम-रिमझिम बारिश....
तो ये कभी इन्द्रधनुष दिखता है....

ये मोहक, सुन्दर रूप प्रकृति का...
सभी के मन को लुभाता है........

कहीं नदियाँ तो कहीं झरने,
तो ये कहीं बादलों में छुपा सूरज दिखता है....

जब भी मौसम बहार का आता है,
हर तरफ खुशी और प्यार लाता है........मोहनिश....!!

Wednesday, June 13, 2012

पर्वत

दूर तक देखने पर
कहीं एक तरफ नजर आते हैं पर्वत......!

विशाल ह्रदय से जैसे बुला रहें हों,
लगता है अभी हाँथ बढ़ा कर छु लूँ इन्हें.......!

मेरे अपने से लगते है कभी-कभी ये पर्वत,
जो एक अजीब सी ख़ामोशी लिए बैठे है.....
जैसे इंतजार कर रहें हो मेरे पहले बोलने का......

वो चाहते है की मैं उनपर विश्वास करूँ,
और चढ जाऊ उनपर......तब वे मुझे धकेल दें फिर से नीचे.....
और अहसास करवा दें ...

यही की कोई अपना नहीं है इस दुनिया में......
सभी पराये........दूर हैं....
और ढोंग रचाये बैठे है.....अपने होने का.............मोहनिश......!!

निराशा का एक शान्त समुन्दर

निराशा का एक शान्त समुन्दर,
हमारी आँखों में सदा ही दबा रहता है....!

जब कभी हताशा की लहरें आती है,
तब ये शांत सा दिखने वाला समुन्दर,
बन जाता है सुनामी......!

तब हर तरह की उम्मीद और साहस,
सभी एक-एक करके दम तोड़ने लगतें है......!

और वहाँ कोई फरिश्ता भी मदद को नहीं आता,
सभी खुद को बचाने में जुटे नजर आते है.......!