Saturday, May 26, 2012

रेशम में लिपटी जिंदगी

जिंदगी हर बार कैद ही रही,
फिर भी कभी रुकी नहीं, कहीं थमी नहीं......

रेशम में लिपटी हुई,
डाल के सहारे लटकती रही.....

जिससे दामन दुनिया अपना,
हर बार झटकती रही........

फिर आई बरी उसकी,
अब आया समय बदल जाने का,

फूलों सा खिल कर,
वन-वन मंडराने का.........!!!!

पेंडो का बंधन

रात जैसे-जैसे गहरी हुई, और अँधेरा हुआ सभी तरफ,
तभी पेंड तेज हवाओं का सहारा लेते हुए
कुछ इस तरह से सरसराने लगे मानो बातें कर रहें हो...आपस में.....

वे पेंड कई सालों से खड़े है अपनी जगह पर,
लगता है वे अब ऊब चुके है इस तरह खड़े-खड़े.......

तेज हवा का बहाना बना कर वो हर बार कोशिश करते है,
अपने स्थान को बदलने की....पर ये जड़ें........

ये जड़ें उन्हें उखड़ने नहीं देतीं,
ये पेंड को अपना गुलाम बनाये हुए हैं.....कई सालों से....

हल्की सी रौशनी में दिखाई पड़ता है....
मानो सभी पेंड आपस में भाग जाने की,
कोई योजना बना रहें हो....और फिर सहमति में अपना भी सर हिला रहे हों.....

पर मुश्किल से ही कोई पेंड इस बंधन से आजाद हो पाता है,
और अगर हो भी जाता है तो मारा जाता है....
समाप्त कर दिया जाता है......प्रकृति के द्वारा.....

आजादी किसे प्यारी नहीं है, पर मौत तो कोई आजादी नहीं.......
ये सब मायाजाल है इन तेज चलती हवाओं का....
जो पेंडो के मन में बगावत का बीज बो देती है......

मैं ऐसी हवाओं का विरोध करता हूँ.............................मोहनिश.........!!!

Saturday, May 12, 2012

जन्नत आती है नजर

उस पार कभी कभी,
मुझे जन्नत आती है नजर.....

चंचल हवाओं से जहाँ है बने घर,
और बादलों में सिमटा पूरा शहर.....

सुनहरी रौशनी के सहारे देखता है कोई,
जैसे, कभी मुझे तो कभी मेरा घर......

हर तरफ खुशबुओं का मोसम है,
उसे महसूस करूँ तो कहाँ, देखूं तो किधर....

मन तो करता है छु लूँ उसको हाँथ बढ़ा कर,
पर टूट न जाए ये सपना, लगता है इसका डर......मोहनिश.....!!!