हँसी थम जाती है
पर कभी ख़त्म नहीं होती
ये झरती है
और कलकल करती हुई
रिसती है दिमाग़ में
हँसी की शुरुवात
एक मुस्कराहट से होती है
वही मुस्कराहट
आगे जाकर मन को
आनंदित करती है
और जब मन इस उन्माद
इस आनंद को झेल नहीं पता
तब कही जाकर
हम बड़ा सा मुँह खोलकर
दाँत दिखाते हुए
ठाहके लागाते हुए
हँसते है ..........!!
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